भारतीय वैदिक ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों का शुभ-अशुभ प्रभाव
भारतीय वैदिक ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों का शुभ-अशुभ प्रभाव

भारतीय वैदिक ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों का शुभ-अशुभ प्रभाव

मध्यम नक्षत्र – मध्यम नक्षत्र के तहत वह नक्षत्र आते हैं जिसमें आम तौर पर कोई विशेष या बड़ा काम करना उचित नहीं, लेकिन सामान्य कामकाज के लिहाज से कोई नुकसान नहीं होता। इनमें जो नक्षत्र आते हैं वो हैं पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, विशाखा, ज्येष्ठा, आर्द्रा, मूल और शतभिषा।

अशुभ नक्षत्र – अशुभ नक्षत्र में तो कभी कोई शुभ काम करना ही नहीं चाहिए। इसके हमेशा बुरे नतीजे होते हैं या कामकाज में बाधा जरूर आती है। इसके तहत जो नक्षत्र आते हैं वो हैं- भरणी, कृत्तिका, मघा और आश्लेषा। ये नक्षत्र आम तौर पर बड़े और विध्वंसक कामकाज के लिए ठीक माने जाते हैं जैसे – कोई बिल्डिंग गिराना, कब्ज़े हटाना, आग लगाना, पहाड़ काटने के लिए विस्फोट करना या फिर कोई सैन्य या परमाणु परीक्षण करना आदि। लेकिन एक आम आदमी या जातक के लिए ये चारों ही नक्षत्र बेहद घातक और नुकसानदेह माने जाते हैं।

27 नक्षत्रों के सत्ताईस वृक्ष – नक्षत्रों द्वारा परेशानी उत्पन्न करने पर उनकी शांति को आवश्यक माना गया है। ऐसे में जानकारों के अनुसार हर नक्षत्र का एक वृक्ष होता है। मान्यता के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने नक्षत्र के अनुसार वृक्ष की पूजा करके अपने नक्षत्र को ठीक कर सकता है । यदि जन्म नक्षत्र अथवा गोचर के समय कोई नक्षत्र पीड़ित चल रहा हो तब उस नक्षत्र से संबंधित वृक्ष की पूजा करने से पीड़ा से राहत मिलती है ।

नक्षत्रों से संबंधित वृक्ष : Tree According to Nakshatra :

1– अश्विनी नक्षत्र का वृक्ष :– केला, आक, धतूरा है ।

2– भरणी नक्षत्र का वृक्ष :–केला, आंवला है ।

3– कृत्तिका नक्षत्र का वृक्ष :– गूलर है ।

4– रोहिणी नक्षत्र का वृक्ष :– जामुन है ।

5– मृगशिरा नक्षत्र का वृक्ष :– खैर है ।

6– आर्द्रा नक्षत्र का वृक्ष :– आम, बेल है ।

7– पुनर्वसु नक्षत्र का वृक्ष :– बांस है ।

8– पुष्य नक्षत्र का वृक्ष :– पीपल है ।

9– आश्लेषा नक्षत्र का वृक्ष :– नाग केसर और चंदन है ।

10- मघा नक्षत्र का वृक्ष :– बड़ है ।

11- पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का वृक्ष :- ढाक है ।

12- उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का वृक्ष :- बड़ और पाकड़ है ।

13- हस्त नक्षत्र का वृक्ष :– रीठा है ।

14- चित्रा नक्षत्र का वृक्ष :– बेल है ।

15- स्वाति नक्षत्र का वृक्ष :– अर्जुन है ।

16- विशाखा नक्षत्र का वृक्ष :– नीम है ।

17- अनुराधा नक्षत्र का वृक्ष :– मौलसिरी है ।

18- ज्येष्ठा नक्षत्र का वृक्ष :– रीठा है ।

19- मूल नक्षत्र का वृक्ष :– राल का पेड़ है।

20- पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का वृक्ष :– मौलसिरी/जामुन है ।

21- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र का वृक्ष :– कटहल है ।

22- श्रवण नक्षत्र का वृक्ष :– आक है ।

23- धनिष्ठा नक्षत्र का वृक्ष :– शमी और सेमर है ।

24- शतभिषा नक्षत्र का वृक्ष :– कदम्ब है ।

25- पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का वृक्ष :– आम है ।

26- उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का वृक्ष :– पीपल और सोनपाठा है।

27- रेवती नक्षत्र का वृक्ष :– महुआ है।

ऐसी मान्यता है कि इनकी पूजा करने से नक्षत्रों का दोष दूर हो जाता है। प्रतिदिन इन पेडो़ के दर्शन मात्र से नक्षत्र का दोष दूर हो जाता है।

किसी व्यक्ति के जन्म के समय, चंद्रमा धरती से जिस नक्षत्र की सीध में रहता है, वह उस व्यक्ति का जन्म-नक्षत्र कहलाता है। इस प्रकार अपने जन्म-नक्षत्र जानकर उस वृक्ष को पहचानिए जिसका सेवन आपके लिए वर्जित है। अत: जन्म-नक्षत्र से संबंधित वृक्ष या उसके फल का सेवन नहीं, सेवा करनी चाहिए। अगर हो सके तो अपने जन्म-नक्षत्र के पौधे को घर में लगाकर उसे सींचे। ऐसा करना आपके हित में होगा। इससे आप निरोगी, स्वस्थ और संपन्न रहेंगे, साथ ही दीर्घायु भी होंगे। जन्म-नक्षत्र से संबंधित वृक्ष और वृक्ष-फल को खाने से अधिक उसका रोपड़ करना, देखभाल करना एवं सींचना लाभकारी है।

पंचक नक्षत्र की व्याख्या एवं शुभ-अशुभ प्रभाव

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पांच नक्षत्रों के मेल को पंचक कहा जाता है। ये नक्षत्र हैं धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। इन नक्षत्रों के संयोग से पंचक नक्षत्र आता है। चंद्रमा एक राशि में ढाई दिन रहता है। अत: दो राशियों में चंद्रमा पांच दिन तक रहता है।  इन पांच दिनों के दौरान चंद्रमा, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती से गुजरता है और इस कारण ये पांचों दिन पंचक कहे जाते हैं। जब चंद्रमा 27 दिनों में सभी नक्षत्रों का भोग कर लेता है तब प्रत्येक महीने में लगभग 27 दिनों के अंतराल पर पंचक नक्षत्र का चक्र बनता रहता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब चंद्रमा, कुंभ और मीन राशि पर रहता है उस समय को पंचक कहते हैं। पंचक के समय कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित है, हालांकि कुछ कार्य ऐसे भी हैं जिनको करना वर्जित नहीं है। इस नक्षत्र को अशुभ माना गया है। इसे अशुभ नक्षत्रों का योग माना जाता है इसलिए पंचक के समय कोई भी शुभ कार्य करना हानिकारक होता है। ऐसी मान्यता है कि पंचक काल में कोई कार्य हो तो पांच बार उसकी आवृत्ति होती है। इसलिए इस समय में किए गए कोई भी कार्य अशुभ नतीजे देते हैं। विवाह, मुंडन जैसे मंगल कार्यों को पंचक के समय करने की मनाही है। पंचक काल या पंचक योग का मनुष्य पर प्रभाव पड़ता है। हर वर्ष इसके अलग-अलग संयोग बनते हैं। इस कारण ज्योतिष शास्त्र में पंचक की गणना अति आवश्यक है।

पंचक योग या पंचक काल, हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर माह पांच दिनों के लिए आता है। इस काल में चंद्रमा कुंभ से मीन राशि में लगभग 5 दिनों के लिए रहता है। इस अवधि को धनिष्ठा पंचक के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धनिष्ठा पंचक को अशुभ माना जाता है और इस समय किए गए कार्य एक बार में पूरे नहीं होते हैं। इसलिए हर वर्ष पंचक काल की तिथि और समय की गणना की जाती है।

ज्योतिष शास्त्र में पंचक के प्रकार

1. रोग पंचक – रविवार के दिन प्रारंभ पंचक को रोग पंचक कहा जाता है। इसमें मनुष्य को पांच दिन शारीरिक एवं मानसिक तनाव रहता है। यह पंचक हर तरह के मांगलिक कार्यों में अशुभ माना गया है।

2. राज पंचक – सोमवार को प्रारंभ होने वाले पंचक को राज पंचक कहा जाता है। ये पंचक शुभ माना जाता है। इस पंचक के समय सरकारी कार्यों में सफलता मिलती है। इस पंचक के दौरान संपत्ति से जुड़े कार्य करना शुभ माना जाता है।

3. अग्नि पंचक – मंगलवार को प्रारम्भ होने वाले पंचक को अग्नि पंचक कहा जाता है। इन पांच दिनों में कोर्ट-कचहरी के कार्य आपके हक में होंगे। इस पंचक में निर्माण कार्य, औजार और मशीनरी कामों की शुरुआत करना अशुभ माना जाता है।

4. मृत्यु पंचक – शनिवार को प्रारंभ होने वाले पंचक को मृत्यु पंचक कहा जाता है।  इस पंचक के दौरान मनुष्य को मृत्यु के समान कष्ट से गुजरना पड़ता है। शारीरिक अथवा मानसिक दोनों तरह से मनुष्य को मृत्यु पंचक के समय पीड़ा उठानी पड़ती है। इसके प्रभाव से दुर्घटना, चोट लगने का खतरा बना रहता है।

5. चोर पंचक – शुक्रवार को प्रारम्भ होने वाले पंचक को चोर पंचक कहा जाता है। इस पंचक में यात्रा वर्जित है। चोर पंचक के समय लेन-देन, व्यापार संबंधित कार्य नहीं करने चाहिए। इससे धन हानि होती है।

पंचक नक्षत्र और इनके शुभ-अशुभ प्रभाव

1. धनिष्ठा नक्षत्र में अग्नि का भय रहता है। इस काल में अग्नि से उत्पन्न किसी दुर्घटना की आंशका बनी रहती है।

2. शतभिषा नक्षत्र में कलह-क्लेश और शारीरिक कष्ट का योग बनता है।

3. पूर्वा भाद्रपद में रोग का योग बनता है।

4. उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में जुर्माना या किसी शुल्क के भुगतान का योग बनता है।

5. रेवती नक्षत्र में धनहानि का योग बनता है। इस काल में मनुष्य को धन संबंधित परेशानी से गुजरना पड़ सकता है।

पंचक काल के समय क्या करें और क्या ना करें

1. पंचक काल के समय गृह प्रवेश, उपनयन संस्कार, भूमि पूजन, रक्षाबंधन और भाई दूज मनाया जा सकता है। ये कार्य पंचक काल के समय किए जा सकते हैं।

2. पंचक काल के समय विवाह, मुंडन और नामकरण संस्कार वर्जित हैं। इन कार्यों को पंचक काल के समय करने की मनाही है।

पंचक के प्रभाव से कैसे बचें?

1. पंचक काल के समय दक्षिण दिशा की ओर भ्रमण करने से बचना चाहिए परंतु अगर आपका इस दिशा में जाना आवश्यक है तो आप हनुमान जी को फल का भोग लगाकर उनकी पूजा कर फिर आगे बढ़ें। इससे आपकी यात्रा में पंचक काल का दोष कम हो जाता है।

2. पंचक काल के समय अगर किसी की मृत्यु हो जाती है तो इसके प्रभाव से बचने के लिए शव के साथ 5 पुतले बनाकर अर्थी पर रखे जाते हैं। यह पुतले आटे के या कुश के बने होते हैं। इन पांचों पुतलों का अर्थी में शव के साथ ही पूरे विधि के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है, जिससे कि पंचक दोष समाप्त होता है। मान्यता है कि पंचक काल में किसी की मृत्यु होने से उनके परिवार में अन्य पांच लोगों की भी आयु का भय है।

3. पंचक काल के समय अगर आप लकड़ी के बने फर्नीचर या कोई अन्य वस्तु की खरीद-फरोख्त कर रहे हें तो पहले गायत्री देवी की पूजा करें इससे आपको नुकसान नहीं होगा।

4. घर की छत का निर्माण कार्य अगर आवश्यक है तो मजदूरों को काम पर लगाने से पहले उन्हें मीठा खिलाएं। ऐसा करने से पंचक काल का प्रभाव समाप्त हो जाएगा।

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